दादा हीरा सिंह मरकाम जी का जन्म 14 जनवरी 1942 को बिलासपुर जिले के तिवरता गांव के एक खेतिहर मजदूर किसान के यहां हुआ था जो अब जिला कोरबा जिले के अंतर्गत आता है । पिताजी का नाम स्वर्गीय देवसाय मरकाम तथा माता का नाम सोनकुंवर मरकाम था ।
दादा हीरा सिंह मरकाम जी की प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई । गाँव के आसपास माध्यमिक पाठशाला नहीं होने के कारण सन 1952 में अपने गाँव से लगभग 40 किलोमीटर दूर छुरी गाँव की माध्यमिक पाठशाला में दाखिला लिया । छुरी से कक्षा 7 तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद आगे एक साल के लिए कटघोरा तहसील मुख्यालय गए जहां से शिक्षा विकास सीमित नामक संस्था से वर्ष 1955-56 में आठवीं कक्षा पास किया। चूंकि तहसील मुख्यालय में कोई हाई स्कूल नही था इसलिए एक साल तक घर पर बैठे रहे। उसके बाद बेसिक टीचर्स ट्रेनिंग स्कूल में दाखिले के लिए परीक्षा पास की और फिर एक साल का कोर्स किया जिसकी परीक्षा 1957-58 में उत्तीर्ण किया और उसके बाद नौकरी के लिए प्रयास करने लगे और अंततः 2 अगस्त 1960 में प्राइमरी स्कूल में शिक्षक की नियुक्ति हो गयी।
वर्ष 1960 में सरकारी अध्यापक के पद पर ग्राम रलिया में नौकरी मिल गयी फिर उन्होंने भोपाल से वर्ष 1964 प्राइवेट छात्र के रूप में हायर सेकंडरी स्कूल की परीक्षा पास किया। फिर कटघोरा तहसील से 12 किलोमीटर दूर पोंड़ी उपरोड़ा में प्राइमरी स्कूल के अध्यापक के रूप में वर्ष 1977 तक कार्यरत रहे । पोंड़ी उपरोड़ा से अपना ट्रांसफर जुलाई 1978 में अपने गाँव तिवरता के प्राइमरी स्कूल में करवा लिये। जब पोंड़ी उपरोड़ा में थे तब वहाँ से बीए प्रथम वर्ष पूरा किया और फिर गाँव आकर बीए सेकंड इयर और बीए थर्ड इयर की परीक्षा पास की।
पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर से एम् ए किया और गुरु घासी दस विश्वविद्यालय बिलासपुर से वर्ष 1984 में एलएलबी पास किया जिसमें मेघावी छात्र के लिए उन्हें गोल्ड मेडल प्राप्त हुआ। गोंडवाना रत्न दादा हीरसिंह मरकाम जी को सामाजिक क्षेत्र किये गये सेवा के लिए बेस्ट सिटीजन अवार्ड दिया गया।
राजनैतिक जीवन की शुरुआत वर्ष 1980 की बात है जब अपने गाँव में सरकारी स्कूल में शिक्षक के रूप में कार्य कर रहा था तब बहुत सारे शिक्षकों को ट्रांसफर के नाम पर तंग किया जा रहा था। और सीनियर अध्यापकों का डिमोशन भी किया जा रहा था। फिर अध्यापकों पर हो रहे अन्याय और उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाई और जिले के बेसिक शिक्षा अधिकारी श्री कुँवर बलवान सिंह के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। उनकी पहचान एक जुझारू शिक्षक नेता के रूप में बन चुकी थी।उसी समय विधान सभा इलैक्शन का दौर चल रहा था। सामाजिक और शैक्षिक रूप से जागरूक होने कारण समाज की समस्याओं को बड़े स्तर से हल करना चाहता थे। इसलिए 2 अप्रैल 1980 को सरकारी सेवा से त्यागपत्र देकर विधान सभा के चुनाव में कूद पड़े।निर्दलीय प्रत्याशी होने के बावजूद इलैक्शन में दूसरे स्थान प्राप्त किया और यहीं से मेरी राजनीतिक पहचान बनी और नेतृत्व क्षमता का विकास होना शुरू हुआ।
दूसरा चुनाव वर्ष 1985-86 में भाजपा के टिकट से लड़ा और पहली बार मध्य प्रदेश विधान सभा में पहुंचा। उसके बाद 1990 के लोक सभा चुनाव में पार्टी ने आम राय का विरोध किया जिसमें वहाँ के स्थानीय प्रत्याशियों को सांसद का टिकट नहीं दिया जाता था। जब पार्टी ने उनकी बात को अनसुनी कर दिया तब मैंने बागी प्रत्याशीके रूप में जांजगीर लोक सभा का नामांकन दाखिल कर दिया और भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़े।
गोंडवाना गणतन्त्र पार्टी की नीव तो दिसंबर 1990 में ही पड़ गयी थे लेकिन 13 जनवरी 1991 को आधिकारिक रूप से अस्तित्व दुनिया के सामने आया।
वर्ष 1995 में गोंडवाना गणतन्त्र पार्टी के टिकट पर दादा हीरासिंह मरकाम मध्य प्रदेश की तानाखार विधानसभा क्षेत्र से मध्य अवधि चुनाव लडे और जीत कर दुबारा विधान सभा पहचे। आमचुनाव बर्ष 1998 में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से पुन: विधायक बने।
गोंडवाना रत्न दादा हीरा सिंह मरकाम गोंडवाना समग्र विकास क्रांति आंदोलन चलाकर गरीब हो चुके गाँवों को फिर से समृद्ध बनाना चाहते हैं। बुनियादी स्तर पर गाँव में गोंडवाना गणतन्त्र गोटुल की स्थापना करके लोगों को आधुनिक शिक्षा देकर उनको जीवन का उद्देश -श्रम सेवा बताना चाहते थे।